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Mohd Naseem

Abstract

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Mohd Naseem

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क्या गिला

क्या गिला

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अब किसी से क्या गिला,

जो न था अपना नहीं मिला,

चलो आगे की अब राह लें,

है एक दर बंद तो आगे खुला।


कभी मुसकुराए किसी बात पर,

चलो उन लम्हों को खोज लें,

इस जहां में है मुश्किलें बहुत,

चलो अब खुशियों को खोज लें।


आसमान की चादर फैली है,

हैं सितारे गुल बूटे बने उस पे,

इस ज़मीन की बगिया हसीन,

कुदरती करिश्मे सजे उस पे।


ये घड़ी है अब इंतजार की,

ऐ दोस्त सब्र का तू साथ दे,

जो बिछड़ गया है राह में,

आ सके वो अपना हाथ दे।



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