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Mohd Naseem

Abstract Fantasy

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Mohd Naseem

Abstract Fantasy

मैं उलझनों का शिकार हो गया हूं

मैं उलझनों का शिकार हो गया हूं

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मैं उलझनों का शिकार हो गया हूं,

ऐ मर्ग तेरा तलबगार हो गया हूं,


अपनी आगोश में आ समेट मुझे,

मैं जिंदगी से नाचार हो गया हूं,


सितम वक्त और थपेड़े हज़ार हैं,

रंजो अलम से बेकरार हो गया हूं,


सुकून की हसरत हम भी करते हैं,

इसी चाह में तार तार हो गया हूं,


नसीम अब दुनिया से दिल भर आया,

चश्म दिल पुरनम अशार हो गया हूं।



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