शिक्षक
शिक्षक
मैं अपनी इस वर्दी पे, यूँ लांछन ना लगवाऊंगा
मैं अपने इस देश के खातिर, इक आदर्श बन दिखलाऊंगा
मैं अगले जनम भी, इक शिक्षक बनना चाहूंगा
पैर की मेरी घिस गई जूती, फिर में भी घिसता जाऊंगा
ज्ञान बाटने के खातिर में, कोसो दूर से पैदल आऊंगा
मैं अगले जनम भी, इक शिक्षक बनना चाहूंगा
हूं ज्ञान का दीप जलाता घर घर, पर घर मेरा बिन बाती हैं
ना हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, शिक्षक ही मेरी जाति है
है आंखों पर ये मोटा चश्मा, लिए हाथ में झोला हूं
राष्ट्र निर्माता कहते मुझको, फिर भी में अकेला हूं
कुछ यादें थी बचपन की, वो यादें भी मुझको भूल गई
अल्फा बिटा गामा में, ये पूरी जवानी बीत गई
फिर भी मैं चलता जाऊंगा, भटके को राह दिखाऊंगा
मैं द्रोणाचार्य सा गुरु नहीं, पर अर्जुन तुम्हें बनाऊंगा
हीरे को में चमकाऊंगा, में कर्मवीर कहलाऊंगा
अपने ही इन हाथों से मैं माटी को घड़ा बनाऊंगा
मैं अगले जनम भी, इक शिक्षक बनना चाहूंगा
मैं अगले जनम भी, इक शिक्षक बनना चाहूंगा।।।