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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

4.5  

मानव सिंह राणा 'सुओम'

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विश्वास

विश्वास

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तुम्हैं आज भी विश्वास नहीं मेरा।

जाने कब छटेगा जिंदगी का अंधेरा


मैं जान तक लगा के बैठा हूँ।

तुम्हैं आज भी विश्वास नहीं मेरा।

हर पल यही सोचता हूँ आज भी।

कब छटेगा ये जिंदगी का अंधेरा।


जब पैसों की बरसात होती थी

सभी से विश्वास की बात होती थी

हर पल यही सोचता हूँ आज भी

जाने कब होगा अब नया सवेरा।


पैसा गया तो विश्वास भी चला गया।

इंसान से ही इंसान को छला गया।

हर पल यही सोचता हूँ आज भी।

कब तक रहेगा गरीबी अपमान तेरा।।


रास्ते हुए कठिन पर मुझे प्यास है।

हर पल हुए तुम नगन मुझे एहसास है।

हर पल यही सोचता हूँ आज भी।

कब तक मिलेगा मुझे सम्मान मेरा।


रातें कई जगते जगते गुजर गईं।

बात कई बनते बनते बिगड़ गईं।

हर पल यही सोचता हूँ आज भी।

पैसा ही सब कुछ क्यों हो गया मेरा।।


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