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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

Abstract

आत्मबल

आत्मबल

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इस भागती दौड़ती जिंदगी में,

भावनाएं और संवेदनाएं

टूटकर चटककर बिखर रही है।

किसे फुरसत है उसे समेटे और संभाले,

और उसमें जो थोड़ा पीछे है,

पीछे छूटता जा रहा है।

दर्द,बिलबिलाहट और अकुलाहट,

उसमें घर कर जिंदगी को 

कठिन से कठिनतम बना रहा है।


थोड़ी सी मदद,ख्याल ,फिक्र और

परवाह करके इंसान

स्वयं को मसीहा बताता रहा है।

भूल जाता है कि ईश्वर ने ही

उसे इंसान रूप में कर्म करने का मौका दिया।

मगर वह चंद परवाह दिखाकर 

या थोड़ा सा प्यार लुटाकर

खुद को भाग्यविधाता समझने की भूल

करता ही जा रहा है।


खैर जीवन यही है 

की जिस तरफ बयार लेकर जाए

आपको जाना ही होता है।

जो विधान ईश्वर ने लिखे उसे निभाना

ही पड़ता है।

परंतु झूठी अना की तुष्टि

गलती को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति।

और उसके ऊपर खुद को सत्य सिद्ध करने

का निर्रथक प्रयास।

फासले बढ़ा रहा है,फैसले सुना रहा है।


अंततः जीवन वही है 

जहाँ कर्म और भाग्य का समुचित प्रभाव,

सत्य को स्वीकार करने की हिम्मत

इंसानियत को जीवित रखने का प्रयास,

हमें आत्मबल दे रहा है।


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