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Kunal Meghwanshi

Abstract

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Kunal Meghwanshi

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इम्तिहान-ऐ-जिन्दगी

इम्तिहान-ऐ-जिन्दगी

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अपने आपको आज आजमाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

किसी से प्यारी-प्यारी बातें नहीं करनी मुझे रात भर...

मुझे तो बस एक बार अपने माँ-बाप को खुशी के आँसू रुलाना है...

कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशें नही है मेरी...

लेकिन हा...

एक छोटा ही सही अपने माँ-बाप के लिए महल तो सजाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

अपनी जिन्दगी की सभी पहलियों को एक बख्शे में बंद करके...

अब मुझे बस चलते चले जाना है...

मुझे मंजिल पाने की कोई जल्दी नही है...

मुझे तो रास्तों को ही सुहाना बनाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

बहुत रोया हूँ तेरे खातिर-ऐ-जिंदगी

अब मुझे बस सबको अपना हस्ता चेहरा दिखाना है

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

बंजर पड़ी मेरी जिंदगी को...

अब मुझे थोड़ा-सा ही सही हरा- भरा तो बनाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

काफी वक़्त से सो रहा था मैं आंखें मूंदें तेरे इश्क़ में पागल...

अब मुझे इश्क के फरेब से दूर देश के लिये कुछ कर  

गुजर जाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...

फूलों पर चलने से क्या होगा यारां...

मुझे तो भीष्म की तरह काटों पर सोकर अमर हो जाना है...

जो उम्मीदें लगा रही है न दुनिया मुझसे...

मुझे उससे कुछ अलग करके दिखाना है...



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