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Kunal Meghwanshi

Abstract

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Kunal Meghwanshi

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खोखले-लोग खोखला-इंसाफ

खोखले-लोग खोखला-इंसाफ

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ये कुछ दिन का जोश बहुत

जल्दी ठंडा हो जाएगा

फिर से एक ओर मासूम का नाम

अखबारों में कहीं खो जाएगा


आखिर कब थक भारत

आजाद होकर भी आजाद नही कहलायेगा

देवी की पूजा प्रधान हमारा ये देश

कब तक लड़कियों पर जुल्म ढायेगा 


स्वच्छ करने में लगी है ना

सरकार हमारे देश को

एक सवाल पूछना उनसे आखिर ये

मन का मैलापन किस तरह से जाएगा


लड़कियों को समझाते है हर

घरवाले जल्दी घर आ जाना बेटी

कोई लड़की मिले रात में अकेली तो उसे

हिफाजत से घर छोड़कर आना ये कब और

कौन अपने बेटे को सिखयेगा


जाकर कह दो हर पिता से कि ना

देखे वो सपने अपनी बेटी की शादी के

क्योंकि ना जाने कब कोई दरिन्दा

उनके सपनों को फिर से आग लगा जाएगा


ये भारत अब भारत नहीं रहा

दलदल बन छुका है हवस का

यहाँ ना जाने कब और कहाँ

किस लड़की का पैर फिसल जाएगा


सभी माँओं से कह देना कि कहानी ना सुनाये

अपनी बेटी को सपने के राजकुमार की

क्या पता बड़ी होने से पहले ही उसे कोई

दरिन्दा सपनों से ही उड़ा ले जाएगा


कहना तो नहीं चाहता पर अगर ऐसा ही होता रहा तो

भारत का झंडा धीरे-धीरे लहराते हुए

एक दिन शर्म से अपने आप ही झुक जाएगा।


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