माँ मेरी दुनिया
माँ मेरी दुनिया
बड़े होने से पहले ही बड़ो के सारे गुर सिख जाती है
भाई चाहे छोटा हो या बड़ा ये
उसको माँ जैसा ही प्यार जताती है
बस घरवालों की खुशियों के लिए ये एक
अनजान के साथ भी जिंदगी की डोर में बंध जाती है
सच कहते है लोग ये औरत है ये
किसी के समझ नहीं आती है
अपनों के लिए ये भगवान से भी लड़ जाती है
आदमी तो बस चार दीवारी बनाता है
उस चार दीवारी को घर सिर्फ एक औरत ही बनाती है
इच्छा ख्वाहिशें और ख्वाब किसके नहीं होते
पर फिर भी ये अपनो की खुशियों के लिए
ता-उम्र उस चार दीवारी में एक
बंदी की तरह जीती चली जाती है
सच कहते हैं लोग ये औरत है
ये किसी के समझ नहीं आती है
जन्नत वैकुण्ड और स्वर्ग सब बेकार है
मुझे तो मेरी माँ की गोद में हर
रोज एक नई जिंदगी मिल जाती है
और शब्द बहुत छोटा है
माँ पर इस छोटे शब्द में ही
पूरी कायनात समा जाती है।