शादी
शादी


वो शादी का जोड़ा वो शादी की रस्में
वो सात फेरों का बंधन वो प्यार की क़समें
क्या हर शादी दो लोगों की इच्छा और सहमति से होती है?
या कुछ फ़ैसले मजबूरी में लिए जाते है ?
क्या हर रसम हर क़सम हर वादे ज़िंदगी भर निभाए जाते हैं ?
या ये सब एक दिन का दिखावा है ?
अपने आस पास के रिश्तों को देखके समझने की कोशिश की है और उसी पे कुछ लिखने की चाहत की है।
वो प्यार होना वो शादी के सपने देखना
वो शादी का दिन वो शादी की पहली रात
वो पति ही ज़िंदगी वो पति का परिवार
वो ज़िम्मेदारी का बोज वो सपनों की खोज।
वो नन्हें मेहमानों का घर आना
वो उनकी सही परवरिश करना
वो उनको ख़ुद से बेहतर बनाना
वो उनको दुनिया से लड़ना सिखाना।
वो ख़ुद को कभी अकेला पाना
वो ख़ुद से ही ख़ुद को संभालना
वो अपने दर्द को भूल जाना
वो अपनों को हमेशा ख़ुश रखना।
वो अपनों से ताने सुन के वो ख़ुद से ही बहस करना
वो पति से रूठना झगड़ना वो पति से मार खाना
वो सुबह का टिफ़िन वो रात का खाना
वो बर्तन मांजना वो कपड़े धोना।
वो ज़िंदगी की राह में वो पति के पीछे चलना
वो सब कुछ पूछ के करना वो ख़ुद की परवाह न करना
वो समझौते में जीना वो इच्छाओं का मारना
वो बच्चों के लिए झूठ बोलना वो कोने में जाके अकेले रोना।
वो ज़िंदगी का दस्तूर
वो ज़िंदगी का ताना
वो पापा की परी कहलाना
वो किसी के घर की बहू बनना।
आख़िरी कुछ lines अर्ज़ करती हूँ....
बचपन से जवानी का मिलना जवानी से बुढ़ापे पे रुकना
यही ज़िंदगी का सफ़र मान के काँटों पे चलना
डोली से उठकर अर्थी पर जाना
बस यही है औरत का जीना
यही है औरत का जीना।