दरवाजे पे दस्तख
दरवाजे पे दस्तख
अतीत के जाने के बाद, कभी सोचा न था
कोई कभी आयेगा, दुबारा समझायेगा
क्या है जीने की वजह, या यादों को समेटना।
उस दिन दफ्तर से लौट कर,
दरवाजा खोल रहा था
तभी पीछे से कोई बुलाया !
मैंने पूछा कौन हो आप
जवाब मिला
वो वर्तमान था !
मैंने कहा जी कहिये क्या काम है
उसने कहा मेरे दोनों भाई सच और झूठ
मुलाकात की उमीद से आपके पास आए थे।
मैंने कहा आइये बैठ के बातें करते हैं
सच बोलने लगा
मेरे वजूद की मिसाल हो आप
मुझे कोई भरोसा करे उसकी उमीद हो आप।
भले ही जिंदगी की राह में
अपने भाई के बिना अधूरा हूँ
पर सच तो ये है
आखिर हर उलझन में जीत मेरी ही होती है।
झूठ कहा चुप रह पाता
उसने कहा-
मेरा वजूद है कि नहीं ये अब की लोगों के
नजरो में झांक के देखिये
जवाब मिल जायेगा।
आपके दोस्त आपको मेरी
नजरों से तो देखते हैं
भले ही सच की मिसाल आप
कितनी भी क्यूँ न दे
आपकी वजूद 10 प्रतिशत सच हो
तो 90 प्रतिशत मेरे से ही तो है।
बड़े इत्मीनान से सब सुनके वर्तमान ने कहा
ज़िन्दगी की दस्तूर ही यही है
कभी हार तो कभी जीत है
कभी सच तो कभी झूठ है।
अक्सर नजरें धोका खाती है
जो दीखता है वो नहीं होता
और जो नहीं होता वही दीखता है।
देखा जाये तो हर उलझन का जड़
मेरा एक भाई है
तो उसका समाधान दूसरा
असल में तो मेरे वजूद का पता
समय से ही है।
अगर समय ठीक चल रहा
तो में सच हुँ अच्छा हुँ
वरना में झूठ हुँ बुरा हूँ।
अच्छा में चलता हूँ
थक गए होंगे,
थोड़ा आराम कर लीजिए।
मेरा क्या है मैं तो हर पल
आपके साथ हूँ
ज़िन्दगी की सही मायने में
अस्तित्व का पता तो आज चला
मैंने कहा सुनो आते जाते रहना
मेरे हर जख्म का इलाज
तुम्हारे पास जो है।
