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डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

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डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

मैं क्यों न उसे चाहूं?

मैं क्यों न उसे चाहूं?

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उसकी आंखों में मैंने अपने लिए चाह देखी है,

मेरे ओझल हो जाने पर मैंने उसकी आह देखी है,

यूं तो कई हैं मुझे चाहने वाले इस दुनिया में,

मगर मैंने सदा उसके ही आने की राह देखी है।

मेरी हर शायरी पर मैंने उसकी वाह-वाह देखी है,

पर्दे के पीछे से मुझे झांकती उसकी निगाह देखी है,

तुम एक वजह पूछते हो मुझसे उसे चाहने की,

मैंने खुद के लिए उसकी सैकड़ों परवाह देखी है।

ऐसे हालात में उसे मैं न चाह कर गुनाहगार बनूं?

अपना फर्ज़ भूल जाऊं और यादगार बनूं?

तुमने उसे देखा नहीं तभी इतने हैरान हो,

तुमने उसे सुना नहीं तभी इतने परेशान हो,

उसका चेहरा जैसे किसी बच्चे का मुस्कुराना,

उसकी आवाज़ जैसे किसी भौंरे का गुनगुनाना।

अब भी कोई शक है उसको लेकर तुम्हारे जेहन में?

मैंने तो सब खोलकर रख दिया जो भी था मन में,

उसकी चाहत में ये दिल डूब के कमबख्त हो गया,

अब मैं चलता हूं उसके आने का वक्त हो गया।



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