इक ऱीझ
इक ऱीझ
तुम ऐसे मुझे मिलो कि मैं दुनिया भूल जाऊं
मैं इस ज़माने में अपने आप के होने पर मुकर जाऊं
तुम लेकर आना मेरा वर्तमान , और उसमें रहने वाली मेरी खुशियां ,
सुख और अपना ढेर सारा समय ,
जो न कभी अतीत बन सके और न कभी भविष्य बन सके ।
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वाक़िफ होकर आना मेरे हर कर्म से , मेरी की गई हर गलती से ,
मेरे गुनाहों से और साथ ही में वाक़िफ होकर आना मेरे गुनाहों की हर सज़ा से ।
ताकि तुम जान सको वो सब जो मैंने सहा है जो मैंने झेला है
और जान सको मेरी सज़ा का आकार और उम्र मेरे किए गए गुनाहों से बड़ा है।
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सबने मेरे शब्दों का इंतज़ार किया है मुझे समझने के लिए ,मगर
जब तुम मुझे ख़ामोश देखो तो समझ जाना कि कुछ बातें होंगी ऐसी
जो मुझे भीतर से खा रही होगी।
बिना कुछ पूछे बस तुम बैठ जाना साथ मेरे और
सुनना उन सभी आवाज़ों को मेरे अंदर शोर कर रही होंगी।

