ग़ज़ल
ग़ज़ल


हां हर पल ही मन मेरा बेचैन रहा कुछ पाने को।
बहुत खो चुका शेष बचे का भी डर है खो जाने को
अब भी जान शेष पंखों में छूने की विस्तृत नभ को
पर नीचे है विस्तृत सागर मन को बहुत डराने को।
तुम जहाज की भांति साथ हो ओ मेरे जीवन साथी।
उड़ते उड़ते थक जाने पर है यही आसरा पाने को।
ढलती उम्र टूटता साहस यही हकीक़त जीवन की।
छोड़ दिए अब सभी सहारे तेरा सहारा पाने को।
खोना पाना नियम धरा का सदियों से चलता आया।
जो खोया वह सोना था अब मिट्टी है पा जाने को