प्यार और किस्मत
प्यार और किस्मत
प्यार दिल से किया, मगर मुकम्मल न हुआ,
किस्मत का खेल था, कोई हल न हुआ।
तूने चाहा, मैंने पूजा तुझे खुदा जैसा,
पर हमारा मिलन कभी सफल न हुआ।
चाहा था तुझे चांद की रौशनी समझकर,
किस्मत में अंधेरों का ही पल न हुआ।
हर दुआ में तेरा नाम लिया था मैंने,
पर किस्मत को ये मंज़ूर कल न हुआ।
प्यार करता रहा, तुझ पर एतबार करता रहा,
किस्मत से शिकवा, पर इंकार करता रहा।
अब समझा हूँ, ये जिद भी बेकार थी,
किस्मत के आगे हर प्यार हारता रहा।
तेरी यादों में भी किस्मत का फेरा है,
जो दिल में दर्द है, वो किस्मत का डेरा है।
प्यार और किस्मत की जंग में ये जाना,
दिल हार जाता है, खेल किस्मत का घेरा है।

