प्रेम का ज्वार
प्रेम का ज्वार
सुसुप्त पड़ी शिराओं में प्रेम की जिह्वा खलबली मचाते तुम्हें आह्वान दे रही है,
इस मौन लंबी रात को जश्न में बदलते भड़भड़ाने बेताब चिंगारी को हवा दे दो.....
"सोचो चाँद मेरी रोशनी का हल्का सा साया है"
मेरी कमनीय काया में नृत्य की तान भरती है तुम्हारे चुम्बन की मोहर,
रात की हवा को मंत्रमुग्ध कर देते कालातीत नृत्य को भर दो न मेरे अंगों की लचक में......
फ़र्श पर हमारे चार पैरों की चुम्बकीय गति से उठने दो भावुक बवंडर को,
इस युग को याद करेगी हमारी आने वाली पीढ़ी.....
एक प्रेमी ने नृत्य का सुंदर उपहार दिया था अपनी प्रेयसी को रोमांस का तमतमता तड़का लगाते.......
अपने हाथ की एक मजबूत पकड़ कस लो मेरी पीठ के छोटे से हिस्से पर,
वाद्यों से उठती लय पर अपने नेतृत्व की भावना को हावी करते छा जाओ
तुम्हारे नृत्य कौशल को मैं अपने भीतर थाम लूँ........
"एक निपुण नर्तक को एक निपुण प्रेमी माना जाता है"
पागलपन के चरम बिंदु तक मुझे ले जाओ,
जब नृत्य का अंत मंत्रमुग्ध करते मेरी मांस पेशियों में कामुकता का ज्वार भर दे
तब हमारे बीच फैले हर अवरोधों को हटाकर मेरे अस्तित्व से लिपटकर मुझ पर बरस जाना तुम.....
मैं चाहती हूँ हमारे दुनिया से चले जाने के बाद भी एक कला रह जाए हमारे नाम से,
यूँ नृत्य के ज़रिए सहलाते मेरे अंगों में एक बिजली भर जाओ तुम.....
चलो नृत्य की शैली में प्रणय की परिभाषा लिख जाए।