बदलते बरस में मौसम चार मानव मन का भी यही व्यवहार! बदलते बरस में मौसम चार मानव मन का भी यही व्यवहार!
सुसुप्त पड़ी शिराओं में प्रेम की जिह्वा खलबली मचाते तुम्हें आह्वान दे रही है. सुसुप्त पड़ी शिराओं में प्रेम की जिह्वा खलबली मचाते तुम्हें आह्वान दे रही है.
मेरे घ्राणेन्द्रिय को और क्रियाशील कर देती है। मेरे घ्राणेन्द्रिय को और क्रियाशील कर देती है।