इन्द्रियाँ
इन्द्रियाँ
हूं मैं जन्मांध
ये जानती हूं,
कामुक पुरूषों के स्पर्श से
पहचान जाती हूं
कि कितने लिजलिजे से
स्पर्श होते हैं तुम्हारे
जब हाथ दया भाव में
पकड़ते हो तुम मेरा
तुम्हारे नथुनों से
निकलती हवस भरी
वो गर्म हवा
मेरे घ्राणेन्द्रिय को
और क्रियाशील कर देती है।
तुम्हारी छलयुक्त कोमल वाणी को
मेरी श्रवणेन्द्रिय
तुरंत पहचान जाती है।
और मैं
जन्मांध होते हुए भी
देख लेती हूं
तुम्हारे मन के भीतर की
घिनौनी प्रवृत्ति।