भू- कानून...!
भू- कानून...!
पहाड़ खाली हो रहे हैं
पलायन की विपदा भारी है
जिस लिए ये राज्य मांगा था हमने
वो दुःख दर्द अब भी जारी है।
जो संजोया था आंखों में सपना
वो अपनों ने ही लील लिया
बिक गए सत्ता के लालच में
मुंह गैरों के आगे अपना सील लिया।।
पूंजीपति परस्त नीतियां सरकारों की
जमीं हमारी भाव कौड़िया बेच रही
मूलभूत सुविधाओं का दिखा सब्जबाग
हमारे नौनिहालों का भविष्य निगल रही।
खो देंगे हम ये जल,जंगल और जमीन
अब तो हमें जगना होगा
रहे अगर हम निष्क्रिया हाथों पे हाथ रखकर
फिर अपने ही वजूद के लिए लड़ना होगा।।
बाहरियों को यूं ही बसने देंगे अगर
तब क्या हाथ हमारे रह जायेगा
लूटा पिटा कर अपने संस्कृति को
क्या अस्तित्व हमारा बच पाएगा।
देवभूमि पुकारती है हमें
इस संकट को यूं ना नजरअंदाज करो
मूल निवास,भू कानून लाकर ही तुम
अपने भावी पीढ़ी का उद्धार करो।।