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Jayshree Sharma

Abstract

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Jayshree Sharma

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सवेरा

सवेरा

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भोर की डेहरी पर

    अलसाई आंखों से

आकर किरणों संग 

    झांक रहा होगा सवेरा।

छिपते कदमों से

     उनिंदी आंखों में

मां के संग

     जाग रहा होगा सवेरा।

गोरी के घुंघट की 

          ओट तले 

 नूर भरे चेहरे सा

         झांक रहा होगा सवेरा।

भोर की डेहरी पर

       ताक रहा होगा सवेरा।

बच्चों की चपलता में

         चंचल कदमों सा

हर्ष उल्लास लिए

        आ रहा होगा सवेरा।

बुढ़ापे की ठहरी जिंदगी में

       उमंग की अहसास को

आहिस्ता - आहिस्ता 

         जगा रहा होगा सवेरा।

भोर की डेहरी पर

         अलसाई आंखों से 

आकर किरणों संग

       झांक रहा होगा सवेरा।


              



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