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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

गांव का दृश्य

गांव का दृश्य

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गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?

आधे गांव तो शहर लील गये ।

आबादी शहरों को दौड़ गयी ,

चाह कमाई ,दद्दा-बाई भूल गयीं ।


गाँव बाहर की नीम ही कट गयी,

चौपालें टीवी मोबाइल लील गये।

विकास आड़ में गांव भूल गये।

गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?


संस्कार युगों की हुई कहानी,

बची न कहीं गांवों की निशानी।

ट्रेक्टर खेतों में चलते दिख रहे, 

चौपाये अपनी किस्मत रो रहे। 


गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?

आधे गांव तो शहर ही लील गये ।

एसी-कूलर देख पीपल रो रहे,

गाय-भैस के दूध-घी बोल रहे।


प्रेम-अपनत्व मौन क्षुब्ध हो रहे,

स्वार्थ-लोभ में ममत्व सुप्त हो रहे।

गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?

आधे गांव तो शहर ही लील गये ।


ताले में बंद आंगन आंसू बहा रहे,

नदी उपवन सूख दुर्दशा बता रहे।

अब गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?

आधे गांव तो शहर ही लील गये ।    


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