गांव का दृश्य
गांव का दृश्य
गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?
आधे गांव तो शहर लील गये ।
आबादी शहरों को दौड़ गयी ,
चाह कमाई ,दद्दा-बाई भूल गयीं ।
गाँव बाहर की नीम ही कट गयी,
चौपालें टीवी मोबाइल लील गये।
विकास आड़ में गांव भूल गये।
गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?
संस्कार युगों की हुई कहानी,
बची न कहीं गांवों की निशानी।
ट्रेक्टर खेतों में चलते दिख रहे,
चौपाये अपनी किस्मत रो रहे।
गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?
आधे गांव तो शहर ही लील गये ।
एसी-कूलर देख पीपल रो रहे,
गाय-भैस के दूध-घी बोल रहे।
प्रेम-अपनत्व मौन क्षुब्ध हो रहे,
स्वार्थ-लोभ में ममत्व सुप्त हो रहे।
गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?
आधे गांव तो शहर ही लील गये ।
ताले में बंद आंगन आंसू बहा रहे,
नदी उपवन सूख दुर्दशा बता रहे।
अब गांव रहे कहाँ कोई तो बताये ?
आधे गांव तो शहर ही लील गये ।
