फिर से किसी की याद
फिर से किसी की याद
फिर से किसी की याद में तकिये को भिगोता होगा
आज की ..........रात भी तन्हा चाँद कहीं रोता होगा
दिल में तो आता होगा कि इन रातों से बगावत कर दे
पर मासूम सितारों की सूरत देखकर ....
हर जज़्बे को वहीं दबाता होगा ...
आज की रात भी तन्हा चाँद कहीं रोता होगा
क्यों चली आती हैं बार बार यादें उसकी
क्यों हर पल में सताती हैं मुलाक़ातें उसकी
वो हर रात ख्वाब बनकर मेरी आँखों में उतर आता है
वो अब भी क्यों अहसास बनकर मेरी साँसों में सँवर जाता है
क्या उसे भी मेरी ही तरह कोई टीस उठती होगी
क्या उसे भी चाँद में मेरा अक्स नज़र आता होगा
क्या वो भी मेरी ही तरह नंगे पाँव छत पर दौड़कर
जाता होगा ....
और चाँद को देखकर अपनी बाहें फैलाता होगा
रंगबिरंगे फूलों से रंग चुराकर भागी तितलियों को पकड़ता होगा
और उसकी कोरी हथेली पर तितलियों से छूटकर जो इन्द्रधनुषी रंग रह जाते होंगे
उनको समेट कर मेरी कोई तस्वीर बनाता होगा
चाँदनी रात में झील किनारे मद्धिम सी रौशनी में
तारों की महफिल सजाकर जलतरंग का कोई तार छेड़ता होगा
और मेरे लिये जो इस प्रकृति को भी आकर्षित कर दे
ऐसी कोई धुन या कोई कविता बनाता होगा
कितना कुछ महसूस करता है ये चाँद ..
बस सिर्फ एक रात में तो क्या कोई है
जो ऐसी ना जानें कितनी अनगिनत रातों के दर्द का हिसाब लगाता होगा....
और इस चाँद के अन्तस को समझ पाता होगा
कोई है इस चाँद की चिट्ठियाँ लेकर जाता होगा
और उसे जिसे इस चाँद की परवाह तक नहीं
हजार मिन्नतें कर मनाता होगा शायद कोई नहीं ऐसा
फिर आज उसी की याद में तकिये को भिगोता होगा
आज की रात फिर तन्हा चाँद कहीं रोता होगा।

