तुम बताओ
तुम बताओ
किसी शाम फुरसत हो तो बताओ
जज़्बातों में गहराई हो तो बताओ
आंखों की झील ने कितनों को डुबोया है
बाकायदा गिनती चाहिए तो बताओ...
लोग कहते होंगे तुम्हें खूबसूरत किताब
उनके कहने पर तुम मत जाना
उस किताब के गुलाब का किस्सा
गर सुनना हो तबीयत से तो बताओ,
परछाई चाहे तेरी मुझसे दूर होके जाती है
मैं खफ़ा फिर भी नहीं होता
तुम ख़ुद मेरे अंदर हो मेरी जान
ख़ुद से कभी मिलना हो तो बताओ,
इतनी तारीफ़ से भी नज़र नहीं लगेगी तुम्हें
तुम इतराना छोड़ मत देना
तुम्हारा वजूद इस कदर अंदर बसा है मेरे
तुम्हें आईना देखना है तो बताओ ।

