इश्क मेरा
इश्क मेरा
इश्क मेरा छुकर तुने मेरे मन के तरंगो को,
तरो-ताजा किया मेरे सोये अरमानों को.
तू ही बता की मैंने ऐसी क्या खता की
बिन मांगे तुझे मैंने दे दिया दिल को.
कोई मेरे इश्क को समझता पागलपन,
तो कोई उसे मेरा कहता दिवानापन.
इश्क के दुश्मन उसे कहते मेरा बचकानापन,
तो कोई उसे मेरा कहता छछोरापन.
साथी मेरे उसे कहते जवानी की रवानी,
सहेलीयां तेरी कहती उसे मेरे दिल कहाणी.
मेरे मां-बाप उसे कहते जवानी की नादाणी,
दुनियां उसे कहती उबलती बेकाबु जवाणी.
लेकिन में उसे समझता तेरे चेहरे की मुस्कान,
तेरी खामोश अदाओं की हैं वो अनोखी पहचान.
इससे कोई फरक नहीं पडता कोई मुझे कहे नादान,
मेरे जखम, भावना, पागलपन हैं इश्क के निशाण.
तू क्यों हैं मेरे खस्ता हालत से अनजान,
समजकर क्यों बनती नासमज मेरी जॉन.
खता मेरी खता नहीं रहती ये दिले नादान,
तेरी बेरुखी से रुक जाती सांसे मेरी जानेमन.
मेरी मुहब्बत से तू क्यों है इतनी हैरान,
करके अपनी अदाओं से मुझे बेचैन.
बेवफाई का इलजाम तुझ पर लगाकर संगीन
बिन तेरे मेरी जिंदगी नहीं बनेगीं रंगीन।.