बहुत आग है मेरे अंदर
बहुत आग है मेरे अंदर
बहुत आग है मेरे अंदर, इसे तू और हवा न दे, कहीं ऐसा न हो मेरे संग, तू खुद को भी जला दे।
तेरी हवा मिलने से, ये आग और भड़क गई, देख ज़रा ओ मेरी जान, ये चुनरी कैसे सरक गई ?
इस चुनरी को और ज़रा, सरकाने का तूने किया इशारा, मेरी अल्हड़ मस्त जवानी ने, तुझे नैनों के तीरों से मारा।
तू इशारों से दूर भाग, नासमझ बन अंजान बना, पर तेरी एक चिंगारी से, मेरा यौवन परवान चढ़ा।
तू छूकर क्यूँ दूर हटे ? अब मेरे छूने की बारी है, वासना में दोनों मचलेंगे, संग जलने की सब तैयारी है।
इस आग से खेलने का, शौक जो तूने पाला है, अब पलकों को मूँद ज़रा, मेरा जिस्म पिघलने वाला है।
बहुत आग है मेरे अंदर, चल इसे तू हवा और दे, कल ये रात मिले न मिले, मेरे संग खुद को जला दे।।

