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Arun Gode

Abstract

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Arun Gode

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पितर गाँव.

पितर गाँव.

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पितर गाँव

विदर्भमंडल महाराष्ट्र प्रांत की अलग शान,

विदर्भवासियों के लिए वह आन-बान-शान।

वर्धानदी विदर्भ की आस्था,गौरव व पहचान,

उसपर बने छोटे-बड़े सभी बांध उसकी जान।  


मेरे पितरगाँव में वर्धानदी की विशेष पहचान,

वर्धा-बेभला नदियोंका वही होता हैं विलयन।

वह है भगवान शिवमंदिर का भव्य स्थान,

जो मेरे पितरगाँवकी सदीयोंसे आन-बान-शान।  

 

मेरे पूर्वजो का वह था कर्म और जन्मस्थान,

उसी पावन स्थानपर बढा वंशजोंका परिजन।   

मेरे पूर्वजों के परिवारों की रहती वहा संतान,

मेरे पितरगांव की नांदेसावंगी नामसे पहचान।   



शिवमंदिर था,है मेरे वंशजों का श्रध्दास्थान,

परिजनोंके सदस्य मनाते शिवहफ्ता भोजन।    

वे करते अपने-अपने दिनोंपर सभीको गांवभोजन,

इस परंपरा का वंशज कर रहे निरंतर पालन।  


उत्साह से करते वंशज शिवजयंती का आयोजन,

शिवरात्री के दिन होता वहा यात्रा का आयोजन।  

आस-पड़ोस के ग्रामवासी यात्रामें देते योगदान,   

कई सदियोंसे हो रहा शिवयात्राका वहा आयोजन।  


ग्रामवासियों के लिए शिवहेमाडपंती मंदिर शान,

इसी गांवसे आगे भी बढ़ता वर्धानदी का जीवन।

सभी विदर्भवासियोंके लिए वर्धानदी एक वरदान,

आगे पावन वर्धानदी का पैनगंगासे होता मिलन।




पैनगंगा का आगे पावन प्रांतीनदीसे विलयन,  

प्रांतीनदी का आगे बड़ी बहन गोदावरीसे मिलन।   

गोदावरी का दक्षिण भारत में है विशेष पावस्थान,  

गोदावरी दक्षिण-भारत की आन-बाण-शान और जान।   


वह दक्षिण भारतीय सभ्यता की असली पहचान,  

गोदावरीनदी हिन्दू तीर्थयात्रीयों के लिए है पावन।

दक्षिण के आर्थिक व्यवहार का वह प्रमुख साधन,

दक्षिण भारतीयों के आर्थिकस्त्रोतों लिए एक वरदान।


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