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Rajeev Namdeo Rana lidhori

Romance

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Rajeev Namdeo Rana lidhori

Romance

ग़ज़ल- देखा है उसने मुझको हंसकर हजार बार-

ग़ज़ल- देखा है उसने मुझको हंसकर हजार बार-

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पड़ता है काम पड़ोसी के घर पर हज़ार बार।

जाना पड़ा रक़ीब के घर पर हज़ार बार।।


देखेगा जो भी आंख उठा करके वतन पर।

हस्ती मिटा दे उसकी हम लड़कर हज़ार बार।।


वो सामने मेरे कभी आता ही क्यूं नहीं।

लेकिन वो मुझको देखता छिपकर हज़ार बार।।


नज़रों का ये धोखा है या के उसकी है चाहत।

देखा है उसने मुझको हंसकर हज़ार बार।।


आऊंगा तुमसे मिलने को मैं जल्द ही इस वार।

हर वार वो जाता है कहकर हज़ार बार।।


कितने गिनाये ऐब भी दूसरों के इस तरह।

इल्ज़ाम खुद ही लगते है उस पर हज़ार बार।।


जीता है "राना' इस तरह मरकर हज़ार बार।

चुभते रहे वो तीरोंग़म दिल पर हज़ार बार।।



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