ग़ज़ल-रुला देते हैं
ग़ज़ल-रुला देते हैं
इस तरह लोग मोहब्बत में दगा देते हैं।
दिल को तड़पाते है और रुला देते हैं।।
वोट की खातिर गधों को भी मना लेते हैं।
जीत के बाद ही जनता को भुला देते हैं।।
वो तो हैवां हैं जो इंसां की मदद करते नहीं।
लोग ज़ख्मों पे नमक कैसे लगा देते हैं।।
न जायें मंदिर-मस्ज़िद न इबादत कोई।
वक़्त पड़ने पर ही ईश्वर को सदा देते हैं।।
जो कभी खास थे वो यार ही 'राना' मेरे।
मुफ़लिसी के आते ही वो हाथ उठा देते हैं।।