इनायत
इनायत


जुबान से निकली
एक एक अल्फ़ाज़ का
तालुकात तुम्ही से है
ओ रेहनुमा ..ओ रेहनुमा..
यकी़नन तुम बेखबर नेहीं
हर एक रहगुज़र की
मारी हर तहकीकात का वजह
सिर्फ तुम ही तो हो
कभी ओझल ना
हो जाउँ तुम्हरि नज़र से
हवा का रुख़ हमेशा
तुमहारी तरफ़ ही रखना
बेबजा उलझनों में खूद को
दफनाना दूं
पाल पाल की इत्तिला रखना
बेखुदी में साही
कुछ गलतफहमियां पाल भी लूँ
तुम राब्ता बनाये रखना
हर मुस्ताक़िल से अंजान
तुम थोड़े ना हो
यकिनन थाम लेते हो
गर्दीशें की अगाज़ से पेहले
मुझे क्या फिक्र ज़िन्दगी की
जिसे रब राखा रब राखा।