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Lipi Sahoo

Others

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Lipi Sahoo

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उलफ़त

उलफ़त

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क्या हर्ज है बोल देने में

उलफ़त भरे दो लफ्ज़ 

किसी ड़गमगाते को सहारा ही मिल जाए 


दो कदम साथ चल दो 

हमराह बन जाओ पल दो पल के

ग़म की तपिश शायद कम हो जाए 


हल्के हल्के साथ हवा के

गुनगुना दो किसी बेनाम शायर की ग़ज़ल 

क्या पता आसमान भी झूम उठे


इत्मीनान से दिखा दो उसे 

रात के चादर ओढ़े चाँद को

दिल का अलम ही भूल जाए 


थिरक ने दो पैरों को

किसी भूले बिसरे गाने कि धुन पे

उसे ताल मिलाने दो ताल से


रूबरू करा दो

जगमग करती रोशनी के कतार से

लहज़ा उदासी के निगल जाएगी 


आलविदा बोलने से पहले

बलाएं ले लो छोटी सी मुस्कान की

शायद दो बारा मुलाकात हो ना हो....।।



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