फ़रमान
फ़रमान
ए जिंदगी तुझ से नाराज़ नहीं मैं
लोग गलतफहमी पालने लगे
जो थोड़ी सी अल्फ़ाज़ और अंदाज बदले
तेवर लोगों के
कल भी था आज भी है
हमेशा रौंदने को तैयार
सहमी सी रहती थी मैं
जैसे कई अंगारे दिल में दबाये
एक बेबसी थी घू़ंघट के पिछे
अरसों के चुप्पी क्या तोड़े
सो उंगलियां उठ खड़े हुए
सोचा अक्लमंदी मुंह फेर लेने में है
खुदगर्जी की हद तो देखिए
कतार में अपने भी शामिल थे
तब ख़ुदा से कम ख़ुद पर यक़ीन करने लगे
आखीरकार दहेलिज पार क़दम क्या रखा
चारों तरफ़ सन्नाटा सा छा गया
शायद मौत का फ़रमान आया फ़िज़ूल उसूल का।