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Lipi Sahoo

Inspirational

4.8  

Lipi Sahoo

Inspirational

काफ़िर

काफ़िर

1 min
333


लोग कहते हैं 

मैं काफ़िर हूं


इबादत तो दूर की बात 

झुकता नहीं सजदे में उसके 


वाकई में सच तो है 

ये सारे इल्ज़ामात 


कैसे कहूं कैसे समझाऊं

एतबार इबादत का दुसरा नाम


कोई ख़लिश तो नहीं 

उस से निगाहें मिलाने में


मैंने उस के मोहब्बत की तपिश को

दिल में उतारा है 


क्या फर्क पड़ता है 

मैं उसके दर पे जाऊं या ना जाऊं


हर जिल्लत हर मुस्कुराहट के पीछे

उसी का तो हाथ है


देखा है मैंने एक बूँद आंसू पे

उसके सीना छलनी होते हुए 


वो अक्स है मेरा 

किसी अंधेरा या उजाला के मोहताज नहीं


जो रुह में समाया

चार दीवारी में कैद क्यों करूँ मैं ??


अपनी वजूद गंवा के

कहीं जा के सेहरा में गुल खिलाया है


बहुत मुश्किल है उसे ढूंढ पाना

उस से भी मुश्किल है रिश्ता बनाये रखना


सिर्फ इंसानियत की पुजारी है व

मुझे तपती रेत में चलना सिखाया


उसी का ही मेहरबानी 

ये आग का दरिया पार किया 


उसे यहां वहां मत ढूंढो

क्या पता इंतजार कर रहा है तुम्हारे चौखट पे.....


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