मधुर झंकार
मधुर झंकार
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कितनी मधुर झंकार है होती
पहले पहले प्यार की,
पल-पल आंखें रोती
चैन की नींद कहां है सोती।
प्यार का एहसास होते होते
जब वक्त बीत जाए,
फूल सारे मुरझा जाए
फिर भँवरे कहां गुनगुनाए।
याद है आज भी वो घड़ी
घंटों शीशे के सामने भी खड़ी ,
दुल्हन सा खुद को सजाए
शादी का जिस दिन वो न्योता देने आए।
झुकी-झुकी सी उनकी नजरें
बहुत कुछ बयां कर गई,
मन में सवाल थे कई
उनकी आंखों की नमी,
सब जवाब दे गई।
हाय री! किस्मत मेरी
मुझसे क्यों रूठी ,
कैसे उनकी उंगली में देखूं
हीरे की चमचमाती अंगूठी ।
कैसे उन्हें आई लव यू कह दूँ
कैसे अपना स्थान किसी और को दे दूं ,
कैसे उनकी दुल्हन का हक छीन लूँ
कैसे अपना हक़ उसे दे दूं ।
दिल की कशमकश
बहुत ही गंभीर थी ,
शायद अश्रु के मोती चुनना ही
हमारी तकदीर थी ।
उनकी आंखों में फिर वही चाह थी
पर अब अलग-अलग अपनी राह थी,
शायद उन्हें अब तक था इंतजार
एक बार कर दे हम अपने प्यार का इज़हार ।
उनकी शादी का मंज़र था
दिल हमारा बंजर बंजर था ,
हम कभी आए ना उन्हें याद
आशियाना सदा रहे उनका आबाद।
दिल का दिल से
हो ना सका मेल,
हाथों की लकीरों का
अजब था ये खेल ।
काश ! कुछ पल और मिल जाते
फिर इस रिश्ते को खूब सजाते ,
ए जिंदगी तुझको दिल से गले लगाते
इस बेनाम रिश्ते को कुछ नाम दे पाते।
इस बेनाम रिश्ते को कुछ नाम दे पाते।