दरमियां
दरमियां


हमारे दरमियां अब हम नहीं हैं
'मैं' ने अपनी छाप छोड़ दी है,
आंखें इस बात की गवाही दे रहे हैं
कि हमारे बीच अब अहम
और जि़द ने जगह ले ली है,
साथ रहकर भी दूरियां बढ़ने लगी,
न जाने कब कैसे क्या हुआ
बयां कर पाना बेहद मुश्किल लग रहा,
इसमें गलती किसी की भी नहीं है,
ज़िन्दगी की रफ्तार को तेज़ करने की
अपेक्षा अकेले की तो नहीं थी,
इस होड़ में शामिल हो, एक दूसरे से
अलग होते जा रहे हैं हम तुम,
कारण जो कुछ भी हो, हमें 'मैं' से
वापस 'हम' पर आना ही होगा,
सोफा पर तुम्हारी गोद में सिर रखकर
बेतुकी बातों को दोहराना है मुझे,
उसी मुस्कराहट से दरवाज़े पर हर
रोज़ इंतजार करना है मुझे।