संयोग
संयोग
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बहुत जल्दी में थे तुम
आनन-फानन में राय बना दी,
बिना कुछ पूछे या परखे
मुझपे मोहर लगा दी,
विनती मैं करती रही बार-बार
तुमने एक न सुनी मेरी गुहार,
न उतरे सच्चाई की गहराई में
नाखु़श नागवारा सकुचाई मैं,
न जाने क्या कमी रह गई
मैं बेसबब तुमसे दूर होती गई,
फटने दो गुबार गलतफहमियों का
उतर जाने दो अव्यक्त बोझ दिलों का,
बीती बातों को महज़ संयोग न मानना
किताब जिंदगी की सीखना और सिखाना।