पेहली मुलाकात
पेहली मुलाकात
उलझने उस पेहली मुलाकात की
कैसे कटे रात उसके बाद की
वकत काटे ना कटे अब तो
सुलझ जाए ये उलझने अब तो
ना बया कर पाए ये मन अपनी हालत को
कोइ ना समझे इसकी चाहत को
लडे किसमत से या हार मान जाए
उलझनो को सूलजाऐ या खूद उलझजाए
इस कशमकश में बीत रही हे ये जिंदगी
न जाने काहा ले जाए ये बंदगी।