ग़ज़ल- साथ ज़माना होगा
ग़ज़ल- साथ ज़माना होगा
उफ़ जनाजा मेरा इस कदर रवाना होगा।
देखकर तुमको दो आंख बहाना होगा।।
क्यों करते दंगे फ़साद और मारकाट तुम।
मिटोगे वतन पे तो साथ ज़माना होगा।।
इमारतों पे चढ़ के क्या देखते हो नीचे।
मरोगे तो दो ग़ज़ ज़मीन ठिकाना होगा।।
कली जब फूल बन के महकेगी चमन में।
भौरौं को फिर आकर गीत गुनगुनाना होगा।।
बदनामियों के डर से क्यों ख़मोश हो 'राना'।
हर इल्ज़ाम को अपने सर से मिटाना होगा।।
