मैं अतरंगी पल सतरंगी
मैं अतरंगी पल सतरंगी
कुछ सतरंगी पल
दामन में अभी भी बंधे हुए हैं
कुछ मेरे तन से बंधे ,
कुछ तुम्हारे मन सेे बंधे ,
हम दोनों में हीं समाए हुए है।
कभी दरवाजे से ,
कभी छत से ,
राह देखते हैं कुछ पल
हर आहट पर चौक जाते हैं ,
खुद ही मेें सिमट जाते है ,
इंतजार के ये सतरंगी पल
रंग है यह बेकरारी का ,
रंग है यह उम्मीदों का ,
कसक और कशिश के रंग भी मिल रहे ,
इस सतरंगी पल में हम भी कहीं खो रहे।
चांदनी केेे तारों में उलझी रात में ,
उलझ रहे दो मन एक ही बात में
थोड़ा इनकार का रंग
थोड़ा इकरार का रंग ,
रह-रहकर हो जाता है बेकल ,
है मिलन का यह सतरंगी पल ।
बारिश की बूंदों में लिपटी धूप ,
इंद्रधनुष के रंग है खूब ।
वजूद सेेेे तुम्हारे लिपटी
मैं हुई अतरंगी
हुए ये पल भी सतरंगी ।