देखा न कभी
देखा न कभी
मेरी मोहब्बत को तुम कागज़ो में ढूँढते रहे,
नज़रें उठा के देखा न कभी।
चाहत रही साथ मेरे चलने की तुम्हें,
पर हाथों को बढ़ाया न कभी।।
अब और वज़ह क्या बताये दूरियों की,
हमने तो पास तुम्हे पाया न कभी।
मेरी मोहब्बत को तुम कागज़ों में ढूँढते रहे,
नज़रें उठा के देखा न कभी।