यादें 3.0
यादें 3.0
नेत्र कुछ भरे से हैं
मुस्कान फिर भी ओठों पर
दर्द भी उन चोटों से ,
शायद हंस रहा हूं उन्हीं पर
थिरक से एक हाथो में है
निम्न रक्तचाप है
सोचता हूं प्रेम भी तो एक तरह का जाप है
जाप है ताप है!
है कोई वरदान ये
या एक अभिशाप है?
खामोशियां ये रात की
तुम्हारी यादें लाती है
कुछ लम्हे दिखाती है
कभी गुदगुदाती है, कभी रूला जाती है
याद है मुझे ,स्पर्श वो तुम्हारा
वो कुल्हड़ वाली चाय, वो नदी का किनारा
वो बातें, वो साथ रहने के वादे
वो बाजार से इमली चुराने के इरादे
वो सजना तुम्हारा, वो इत्
र की मेहक
साथ बैठ सुनना , कोयल की चेहक
बैठा हूं मैं अब भी भी उसी मेज पे
वही जहां हम एक से हो जाते थे
वही जहां तुम कांधे पे सो जाते थे
थक सा गया हूं तुम्हारे इंतज़ार में
सोचता हूं तुम भी तो थे प्यार में!
क्या आती नही जरा भी याद मेरी?
यूं ही भूल जाना अगर एक कला है
तो तुम भी प्रिये कलामंत हो
है अगर ये को साधना तो
मानो प्रीये तुम भी संत हो
मैं तो रुका हूं यही इंतज़ार में
कैसे झुठला दू कि सच्चा था प्यार में
तड़पता हुआ यूही बिखर जाऊंगा
खुद को ग़लत तुमको सही बताऊंगा
मुस्कुराता हुआ ,एक दिन यहीं मिट जाऊंगा;