STORYMIRROR

SHWET SINGH

Drama Classics

4  

SHWET SINGH

Drama Classics

संवाद कलम से ...

संवाद कलम से ...

1 min
351

तुम ही साथी ,तुमने सब जाना

तुम मेरे ऊर्जा स्रोत हो

मैं नाशवान ,मैं ध्वंशशील

कलम क्या तुम ही समय,तुम अनंत हो ?


 कुछ प्रश्न है उत्तर तो दो ,

भाव तो बाटो जरा

पूछता हूं की क्या मैंने कोसिसे नहीं की थी?

क्या जगना उन रातों का व्यर्थ था मेरे लिए?


पूछता हूं क्या कमी थी सच्चाइयों में मेरी

क्यों मैं यूंही बेवजह रास्ता भटक गया ?

क्यों मैं यूंही चलता रहा और वक्त ही अटक गया ?


 कलम क्यूं है जम गई खुद पर ही धूल सी?

कलम क्यूं लगती है जिंदगी एक जाल सी ?

 क्या मैं भूल गया मेरा आयाम क्या, या रास्तों में यूंही मैं पिछड़ 

गया ?


कलम क्यूं ना दिखाती अब जिंदगी में उम्मीदें

क्यूं खुद ही खुद को मै भूल रहा

 क्यूं रोशनी चली गई , हर तरफ अंधेरा है

क्यूं आंधियों में उड़ गई मेरी सभी मस्तियां

क्या मझधार में डूब गई मेरी वो हस्तियां

 क्यूं दर्द है पर ना दिखे चोट के निशान से


क्यूं बुझ गई अंगार सी वो बुझ गई जो लहू में उबाल लाती थी

क्यूं शांत से विकराल हो गया है ये मन


 कलम बता है भय क्या ?क्या ये शब्द अनंत

क्या रोशनी नहीं मुझमें ? क्या मेरा अन्त है ?

क्या ये मेरा अन्त है ?

क्या ये मेरा अन्त है,क्या ये मेरा अन्त है ?_


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama