गिर जाना मेरा अंत नहीं
गिर जाना मेरा अंत नहीं
यूं ही निकल पड़ा मैं सपनों की कश्ती लिए बीच मझधार में,
कश्ती डूबी तो समुंदर की गहराई समझ आई
यूं ही किनारे नहीं मिल जाते सबको
सांसें थमी तो जुनून की लड़ाई समझ आई
डूब जाने का रास्ता भी था मेरे पास
लहरों से लड़ा तो आसमान की ऊंचाई समझ आई
यूं ही गिरना उठाना ही तो है जिंदगी,
खुशियां भी है और अंधेरे भी
घिस कर ही तो कोकिल हीरा बनता है
तप कर ही तो अग्नि में स्वर्ण निखरता है
कुछ खुद से की हैं बातें कुछ खुद को समझाया है
अंधेरे है लाख मगर अंधेरे अनंत नहीं
गिर जाना मेरा अन्त नहीं।
