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Babita Consul

Drama

3  

Babita Consul

Drama

वो बीते पल बचपन के

वो बीते पल बचपन के

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वो बीते पल बचपन की

यादें सताती बड़ी 

अपने गाँव मे अब ना दादी रही 

ना सिर पर अब कच्ची छतें।

 

ना घर की कच्ची दीवारें रही

ना अब दादी के हाथों के लड्डू 

ना चुल्हे में पकती रोटी की खुशबु रही 

अब वो गली मौहले ना रहे।

 

जहाँ खेला करते थे पिट्ठू 

बंधा सा हैं सब 

पहली सी आपसी तालमेल ना रही 

मनाते थे सब साथ त्यौहार।

 

अब वो ढोल मंजीरे रही 

सीपियाँ घन्टों इक्टठा करते थे

सखियों संग 

ना वो नदियाँ के तीरे रहे।

 

ना वो कुएँ अब है वहाँ पर,

ना खेतो मे रहट की आवाजें रही 

खेतों मे खाते थे गन्ने सर्दी में 

ना अब बागों मे मीठी जामुन रही।

 

मीठे -मीठे आम बाँटते थे जन मे ..

अब ना आपसी सौहार्द रही 

गाती थी गाना कोयल डाल डाल 

ना अब पहली सी चीची

करती गौरया रही।

 

 वो बीते पल गाँव के याद आने लगे 

मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर आ गयी 

चले गये सब गाँव छोड़ कर 

ना गाँव मे अब पहली सी चहक रही।


यही बात दिल को रूला दे रही

 वो बीते पल पलट कर ना देखो 

 संजोए हथेलियों मे रखो 

बचपन की यादे बिखर ना जायें।


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