बसंत आयो
बसंत आयो
मेेरे आंगन ऋतुराज पधारे
बसंत पंचमी के दिवस पर ,
महके मेरे घर का आगंन
आज बना सुन्दर योग,
सुन्दर सजीले दो चेहरे
आज रंगे रंग बसंत में।
हो गये पीले दोनों के हाथ
पीले पीले झरते पत्ते
खेतों में सरसो फूली
धरा ओढे चुनर पीली
महुआ महके ,खिले पलाश
फूलों से लदी बगिया सारी
लो आया माघ मधुमास
शीतल चले पुरवाई,
मीठे स्वर मे गाये कोयल
खग वृंद करे किलोल।
गुलाबी क्षितिज का कोना कोना
झरने लगा खुशबु का झरना
उषा की अरूणिम आभा मे
किरणों ने है ख्वाब सजाए
वासंती सपने आखों मे छाए
मेरे आंगन खिल उठे गुलाब
सुन्दर सजीलें दो चेहरे
निशान्त ,शिल्पी।
हर मन मे नेह जगा कर
प्रीत की लिए नयी उमंग
प्रेम की गागरी छलक रही
खुशबु बाहों मे लिपट रही,
धरती से अंबर ,छाया उल्लास,
नव दुल्हन का रुप देख कर
ठहर गया चंदा भी पल भर,
देख कर सुन्दर दो चेहरें
सितारें छेड़े मधुर रागनी,
अपने भाग्य को सराहूं
मेरे घर को किया बसंती,
प्रेम के बिखरे मोती।
बेटी सा स्नेह दिया
मुख से निकले आशीष मेरे
सपनों का संसार सजाओ
प्रेम रहे सीता राम सा
जोड़ी बनी रहे अनुपम,
कुम कुम सजे भाल पर
हर दिन हो वसंती
हर दिन हो त्यौहार !
मेरे आंगन ऋतुराज पधारे
महके बसंत मेरे आंगन।
