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फिर भी मैं पराई

फिर भी मैं पराई

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अपनी नन्ही उंगली से पकड़ 

हाथ पिता आपका चलना सीखा 

कभी घोड़ा बना, कभी पड्डी चढ़

हर दम नाच नचाती  

तुम गुड़िया कह मुझे दुलारते 

मेरी हर जिद्द में मुझे मनाते 


कभी लड्डू कभी जलेबी

मुझ को खिलाते

नन्ही कली की तरह मुझे संवारते 

ग़लती पर तुम मुझे प्यार की

चपत लगाते ,

मेरे माथे को चूम लेते 

मेरी नादानी में मुझे समझाते 

जिन्दगी का हर सबक सीखाते 


प्रेम, अपनेपन के रंगों में रंगी 

मैं हो गयी सयानी 

राह पर खड़े लोग मिले हजार

कौन अच्छा, कौन बुरा 

कराया एहसास 

खड़े उस मौड़ पर 

हुआ सामना रंगों से 

पैर डगमगाये 

संग साथी के चली गयी

पिता से ना किया इज़हार 

यादों की मुट्ठी लिये 

सपनों में भरे रंग हजार 

 

लाड़ली ने पिता का घर छोड़ा 

बना लिया आशियाना 

तितली सी उड़ान भरी 

ना कर पायी रिश्ते को मजबूत,

चाहा था घरौंदा मिला नर्क

प्रेम अपनेपन के रंग हुए

सब धाराशाही ।


आज चाहती है घर वापसी 

पिता का सिर पर हाथ 

रोयी, गिड़गिड़ायी 

पर पिता ने ना दिया साथ 

दिया प्यार दुलार का वासता

पिता ने कहा हमारे लिए

अब तुम पराई ,

हमारे लिए मर गयी हो 


मेरी नादानी की ऐसी ना

सजा दो जन्मदाता 

भूल पर मुझे करो माफ़ 

रिश्तों की डोरी कभी टूट सकती है 

प्यार, वात्सल्य कैसे चुक सकता

है स्नेह बंधन कभी छूट सकता है 

मैं आज भी पहले जैसी हूं 

तुम्हारे जिगर की टुकड़ा हूं 


यादों की मुट्ठी थामे हूं 

इतना नरम दिल 

कैसे कठोर कर सकते है 

एक बार फिर मुझे अपना कह दो 

मुझे पराई, से अपना बना लो।


 






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