"क्योंकि लड़के रोते नही "
"क्योंकि लड़के रोते नही "
हम लड़के
हम भी इस समाज में जीते है
हमारे भी एहसास है
हमें भी दुख होता है
तकलीफ होती है
संवेदनशील हम भी हैं
हमारे दिल भी धड़कता है
हम भी प्रेम की भाषा समझते हैं
तकलीफ में आंखों में होता है नीर
लड़के नहीं रोते ये कैसी धारणा है
बचपन से जवानी तक यही सुना
अपनी भावनाओं को अन्दर दबा
रोते हैं दिल ही दिल में
क्या यही पुरूष होने का प्रमाण है
अन्दर की घुटन बना देती है कितने ही मासुम नौजवानों को
मानसिक रोगी
दुखो को सह जाते हैं
दुख दबाते रह ,मिट जाती है उन
की संवेदनशीलता हो जाते हैं कभी कभी कठोर
नही कर पाते इन्सानियत का व्यवहार ........
मन का दुख नहीं कह पाते ,
क्योंकि यही कहां जाता है
लड़के कभी रोते नहीं
घर हो या हो जंग देश की
सभी जिम्मेदारियों को हम निभाते हैं..........।
तुम पुरुष हो ,ये कह धैर्य बढाना ठीक .....
देती है हौसला हर जंग ज़ीने की
हम हर संघर्ष से उबर सकते है
हमारी भावनाओं को समझना होगा ......
हम भी रोना चाहते है कान्धे पर रख
चाहते है पिता का हाथ फेरना सिर पर
मां की गोद मे सर रख सोना चाहते है ......
अपनी पत्नी के सामने गलती पर झुकना चाहते है
बेटी के संग सहृदय समय बीतना चाहते है
बेटे का मित्र बन उस से खेल में हारना चाहते है
हम इतने कठोर नही जितना
हम लड़को को मुखौटा पहनाया जाता है ......
हमारा साथ देना होगा ,
हमें भी दुख मे दुखी हो रोना आता है
हम भी रो ले यही हमारे लिए
अच्छा ......
घुटन से बचना
ना खो जायेगा बचपनअसमय
,रहेगी मासुमियत
धैर्य ,मजबूती से जीवन जी
हम लड़के ज़िम्मेदारी बखुबी निभाते रहेंगे ..............।
कौन कहता है
क्योंकि लड़के रोते नही ।