मानो या न मानो
मानो या न मानो
"सच्चा सुख "
जो चाहत है सच्चे सुख की स्वार्थ भाव को छोड़ो प्यारे,
जो चाहत है प्यार और अपनेपन की...
निःस्वार्थ भाव पैदा करके ही सेवा भाव अपनाना है, स्वार्थ भाव से ना करना अपने माता पिता का सम्मान कभी...
निःस्वार्थ सेवा करना, उनका स्नेह आशीष पाओगे...।
मानो या न मानो
जो चाहत है सच्चे सुख की स्वार्थ भाव छोड़ो प्यारे...
सच्चा सुख नही बिकता...
मन्डी और बाजारो में...
जो बाँटोगे मुस्कान... बच्चो, नर, नारी, इन्सानो में...
उनके दिल से दुआ पा जाओगे...
जो चाहत है सच्चे सुख की
स्वार्थ भाव छोड़ो प्यारे
जो छोड़ोगे स्वार्थ, मिलेगा वरदान सच्चे सुख का...।
मानो या न मानो
ये दुनिया बड़ी निराली है, हर रिश्ते में है, स्वार्थ यहाँ
अपने-अपने निज स्वार्थ में
बेच देते है इन्सानियत...
जो रिश्तों मे हो निःस्वार्थ भाव
जग में सब तुम्हारे हो जायेगे...।
जो सच्चा सुख पाना है स्वार्थ भाव छोड़ो प्यारे...।
मानो या न मानो
ये देह माटी का पुतला है
सब रह जायेगा यहीं जग में
जो निःस्वार्थ प्रेम बाटोगे
प्रभु प्रेम पाकर...
इस जग मे नाम कमाओगे।
जो सच्चा सुख पाना है
स्वार्थ भाव छोड़ो प्यारे
मानो या न मानो...।