एक बनकर क्यों न हम रहे, क्या भूल नहीं सकते हम धर्म-जाती का भेद? एक बनकर क्यों न हम रहे, क्या भूल नहीं सकते हम धर्म-जाती का भेद?
मेरे इन गूंजते सवालों का दर्द कोई मरहम न मिटा पाती हैं क्यों मैं तेरे दरवाज़े पे सिर्फ खामोशी से ... मेरे इन गूंजते सवालों का दर्द कोई मरहम न मिटा पाती हैं क्यों मैं तेरे दरवाज़े...
मुझे मन्दिरों का पता नहीं मुझे मस्ज़िदों की खबर नहीं जो किसी के काम ना आ सके । मुझे मन्दिरों का पता नहीं मुझे मस्ज़िदों की खबर नहीं जो किसी के काम ना आ सके ...
यूँ ही वक़्त गुजारने के लिए आओ हम एक खेल खेलते हैं। यूँ ही वक़्त गुजारने के लिए आओ हम एक खेल खेलते हैं।
इंसानियत मर गई हत्यारे हैं चारों ओर, मत चौंक तू ऐसे तू भी खड़ा उस ओर l इंसानियत मर गई हत्यारे हैं चारों ओर, मत चौंक तू ऐसे तू भी खड़ा उस ओर ...