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Kunda Shamkuwar

Abstract

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Kunda Shamkuwar

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खेल खेल में ...

खेल खेल में ...

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आओ एक खेल खेलते हैं यूँ ही वक़्त गुजारने के लिए....

किसी पर हँस देते हैं...

या फिर किसी रोते हुए को हँसाते हैं.....

यहाँ सदियों से हम हर तरह के खेल खेलते रहे हैं.....

लोग भी तरह तरह के......... 

और खेल भी तरह तरह के.....

कुछ लोग सड़क हादसों को नज़रअंदाज कर निकल लेते हैं....

कुछ लोग उस हादसें का वीडियो बनाने में मसरूफ़ होते हैं.... 

आखिर उनके लिए यह खेल ही तो होता हैं....

और तड़पता हुआ वह जख़्मी इन्सान खेल का एक हिस्सा मात्र.....

कुछ लोग राह चलती लड़की को छेड़ने का पसंदीदा खेल खेलते हैं....

खेल की दूसरी पारी में वे लड़की के लिबास पर तोहमत लगाते हैं....

कुछ उस छेड़छाड़ को नज़रअंदाज करने का खेल खेलते हैं.... 

उनके इस तरह के खेलों को देख मेरी रूह लुहलुहान हो जाती हैं...... 

क्योंकि इन हादसें में फ़क़त इन्सान ही नही बल्कि इंसानियत भी ज़ख्मी होती हैं

कुछ खिलाड़ी अब इनडोर वाला खेल खेलने में माहिर हो गए हैं.... 

कंप्यूटर और स्मार्ट फ़ोन पर तेजी से उँगलियाँ चलाने वाला खेल....

घर बैठे बैठे ही वे बड़ी खामोशी से अपना खेल खेलते जाते हैं.... 

वही ट्रोल करने वाला या फिर अफवाहें फ़ैलाने वाला पुराना खेल.....

जाने अनजाने उनके वे क्लिक्स बहुत कुछ कर डालते हैं....

उनकी एक पोस्ट किसी व्यक्ति या पूरे समाज को तहस नहस कर देती हैं....

उस ख़बर को नज़रअंदाज़ करने वाला फिर एक नया खेल शुरू हो जाता है....

क्योंकि हमने अब खेल ही नही बल्कि खेल के रूल भी बदल दिए हैं....

अब जो खिलाड़ी रुकेगा वह खेल से आउट माना जायेगा....

और किस खिलाड़ी को हार मंजूर होती है भला?

और बिना रुके खिलाड़ी यह सारे खेल फिर से खेलते जाते है......


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