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Tej prakash pandey

Abstract

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Tej prakash pandey

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तुम चपल चंचला चन्द्र वदन

तुम चपल चंचला चन्द्र वदन

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तुम चपल चंचला चंद्र वदन,

 तुम राग ग्रंथ की उपमाये !

तुम उषा किरण सी रक्त वदन ,

तुम कृष्ण पक्ष की आशाएं!

नैनों में डाले श्याम किरण,

पुतलियां करे सम पूर्ण चन्द्र !

मुखड़े की सोभा खींचे मन,

बिसराये सुध तेरा चन्द्र वदन !

तेरे केश लजाये मेघों को,

तेरा टीका मानो हो दामिन!

तू चलती धारा मुड जाती ,

जैसे वर्षों की प्रतीक्षा हो !

तेरे सम्मुख घबराये मन,

जैसे दे रहा परीक्षा हो !

तू मेरी कृति का अवलंबन,

मुझसे ही महके तेरा मन!

तेरे रूप पे लिखे काव्य कयी,

हर बार सूझती बात नई !

तू प्रेम काव्य का आधार नितल ,

बस्ते तुझपे श्रृंगार सकल !

तुझको बस हम तो लिखते हैं ,

महसूस करे जो ह्दय स्थल !

तू सीमा में नहीं आती है ,

क्या लिखू कलम रुक जाती है !

तू उपमाओ की उपमा है ,

कितना सुंदर है तेरा मन,

तू चपल चंचला चंद्र वदन ,

तू उषा किरण सी रक्त वदन 



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