तुम चपल चंचला चन्द्र वदन
तुम चपल चंचला चन्द्र वदन
तुम चपल चंचला चंद्र वदन,
तुम राग ग्रंथ की उपमाये !
तुम उषा किरण सी रक्त वदन ,
तुम कृष्ण पक्ष की आशाएं!
नैनों में डाले श्याम किरण,
पुतलियां करे सम पूर्ण चन्द्र !
मुखड़े की सोभा खींचे मन,
बिसराये सुध तेरा चन्द्र वदन !
तेरे केश लजाये मेघों को,
तेरा टीका मानो हो दामिन!
तू चलती धारा मुड जाती ,
जैसे वर्षों की प्रतीक्षा हो !
तेरे सम्मुख घबराये मन,
जैसे दे रहा परीक्षा हो !
तू मेरी कृति का अवलंबन,
मुझसे ही महके तेरा मन!
तेरे रूप पे लिखे काव्य कयी,
हर बार सूझती बात नई !
तू प्रेम काव्य का आधार नितल ,
बस्ते तुझपे श्रृंगार सकल !
तुझको बस हम तो लिखते हैं ,
महसूस करे जो ह्दय स्थल !
तू सीमा में नहीं आती है ,
क्या लिखू कलम रुक जाती है !
तू उपमाओ की उपमा है ,
कितना सुंदर है तेरा मन,
तू चपल चंचला चंद्र वदन ,
तू उषा किरण सी रक्त वदन
