निराले सपन
निराले सपन
मन से मन मिलते देखे, देखे जो सपन निराले थे।
बुनने वाले वो ख्वाब मेरे, कितने मन के वो काले थे।
झूठा -झूठा अहसास लगा, समझा जो नसीबो वाले थे।
मंजिल जिस टेक खड़ी की थी, सब अपने मतलब वाले थे।
मन से मन ........
भीतर से कितने खुश थे वो, मरहम जो लगाने वाले थे।
जख्म भरे न नाशूर बने, ये ख्वाब जो दिल में पाले थे।
मैं भूल गया जिन बातो को, फिर याद दिलाने वाले थे।
तड़पन मुझको दे खुश होते, कितने मन के वो काले थे।
मन से मन ......
अपना- अपना कहकर मुझको, जो दिल से लगाने वाले थे l
ठोकर में हाथ बढाये थे, खुद पत्थर जिसने डाले थे।
अंतरमन को छलनी करके, जो आँसू पोछा करते थे।
दुख में सहलाते पीठ मेरी, वो जाल भी जिनके डाले थे।
मन से मन .....
विश्वाश बढाने आते मेरा, विश्वाश घात वो करके जब।
खुशियों में साथ खड़े होकर, दुख बाट निहारा करते थे।
चिंता फ़िकर जता करके, वो हमको नापा कर्ते थे।
हम अपना उनको कहते थे, हम कितने भोले भाले थे।
मन से मन ......
रिश्ते बनते दिल से दिल तक, ना थोपे जाते जन्मो से।
कुछ गैर भी कितने अपने थे, कुछ अपने मतलब वाले थे।
गुस्सा हो या दिल की चुभन, बस दिल में रखने वाले थे।
कुछ घाव बढ़ाने वाले थे, कुछ दर्द मिटाने वाले थे।
मन से मन मिलते देखे, देखे जो सपन निराले थे।
